भोपाल (महामीडिया) मैं अपनी प्रत्येक यात्रा को तीर्थयात्रा ही मानता हूं क्योंकि मेरी प्रत्येक यात्रा परमपूज्य महर्षि महेश योगी जी की प्रेरणा से किसी उद्देश्य के लिये ही होती है। दूसरा यह कि ये देव भूमि है और इसका कण-कण पूज्यनीय है अत: मेरी यात्राओं में ये दोनों लक्षण हैं। प्रथमत: यह मेरे आराध्य का आदेश और दूसरा देव भूमी तीर्थ भूमि भारत की यात्रा। अत: यह तीर्थयात्रा है विभिन्न आकर्षक रूपों में जगह-जगह पर जाकर वहीं के समाज में भारतीय वैदिक परम्पराओं की उपस्थिति का आकलन व उनके पालन से सामाजिक जीवन में आनंद की अनुभूति का एक शोध परीक्षण भी है। भारत भूमि विश्व का एक विशाल देश है। क्षेत्रफल की दृष्टि से भले ही हमें दुनियां के सातवें बड़े देश की उपाधि मिली है किन्तु पौराणिक और ज्ञान की दृष्टि से हम आज भी सर्वश्रेष्ठ हैं। मैं दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र 'भरत' के नाम से गौरवान्वित भारत की बात कर रहा हूं। मैं भारत की यात्रा पर निकला हूं जहां अनेक धर्मों ने जन्म लिया और आज भी अनेक धर्मों की शरणस्थली बना है। मेरा रोम-रोम पुलकित हो उठता है जब मैं भारतीय विरासत को पढ़ता हूं और जीवन्त रूप में मैं आज भी उन वैदिक सांस्कृतिक आचरणों का पालन करने वाले लोगों से मिलता हूं जो भले ही आर्थिक रूप से सम्पन्न नहीं हैं किन्तु उन तथाकथित राष्ट्रों से अधिक संस्कारी हैं जो स्वयं को अत्यधिक विकसित, शक्तिशाली व सभ्य मानते हुए अरबों, खरबों रुपए मूल्य के हथियार बनाए बैठे हैं, जो क्षणभर में समग्र संसार का विनाश कर दें। मैंने भारत में अनेकानेक स्थानों पर ऐसे-ऐसे लोगों से संवाद किया जिनको तथाकथित सभ्य समाज में सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता। जिन्होंने जीवन में कभी पेट भर खाना भी न खाया हो, वह भी भारतभूमि को अपनी जीवनदायनी मानकर 'संतोषी सदा सुखी' रूप में चलायमान हैं। उनके जीवन की शक्ति उस परमपिता परमेश्वर में उनकी आस्था है। सम्पूर्ण विश्व इस आस्था की शक्ति से आश्चर्यचकित है। विश्व में गुरुदेव के आशीश व परमपूज्य महर्षि जी के मार्गदर्शन की प्रेरणा से जाता हूं। तब अनेक देशों में लोग मुझसे पूछते हैं कि जीवन क्या है? तो सदैव उनसे कहता हूं कि 'अध्यात्म' शब्द को मैं जितना अधिक जानता जा रहा हूं उससे निष्कर्ष निकालता है कि वही एकमात्र जीवन का सार है। यह एकमात्र शब्द सर्वस्व के कल्याण के लिये युगों-युगों से प्रतिबद्ध है और आध्यात्म ही सम्पूर्ण विश्व को सुख, शांति, समृद्धि की माला में पिरो सकता है। धीरे-धीरे आध्यात्मिकता हमारी सोच, जीवन और कार्यों में परिवर्तित हो रही है और जिस प्रकार से यह गतिमान है बहुत शीघ्र ही वर्तमान समय के समाज में व्याप्त नकारात्मकता को सकारात्म्कता में परिवर्तित कर जीवन आनन्द में वृद्धि हो जावेगी। आध्यात्मिक दृष्टि लम्बे समय के लिये आने वाले परिवर्तनों के अतिरिक्त समाज में सभी स्तर पर वृद्धि करती है। हम भी विश्व की एक ईकाई हैं। आध्यात्म यह कहता है कि जो परिवर्तन आप विश्व में लाना चाहते हो उसे सर्वप्रथम स्वयं में लेकर आओ किंतु यह मानव प्रकृति है कि उसके पास स्वयं को भीतर से देखने का न तो समय है और न ही उत्सुकता है। स्वयं से स्वयं का साक्षात्कार कराने के लिये परमपूज्य महर्षि महेश योगी जी ने 'भावातीत ध्यान योग शैली' को प्रयास रहित शैली कहा है जो हमें स्वयं से मिलती है अपनी नकारात्मकता को सकारात्मकता में परिवर्तित करने का सामर्थ्य प्रदान करती है। हम धीरे-धीरे अपने प्रतिदिन के कार्यों को बड़ी ही सहजता व निपुणता के साथ आनंदित होकर करने लगते हैं क्योंकि 'जीवन में आनन्द का प्रस्फुटन होने लगाता है।'
।। जय गुरुदेव, जय महर्षि।।