नई दिल्ली (महामीडिया) 17 जुलाई से पवित्र श्रावण माह का शुभारंभ हो रहा है। जगह-जगह इसकी तैयारियां शुरू हो गई हैं। वहीं यह माह कांवड़ियों के लिए भी महत्वपूर्ण होता है। इसमें श्रध्दालुओं द्वारा कंधे पर गंगाजल लेकर भगवान शिव के ज्योतिर्लिंगों पर चढ़ाने की परंपरा है। कहा जाता है ऐसा करने पर यह भक्तों को भगवान शिव से जोड़ाता है। महादेव भक्त से प्रसन्न होकर उसे मनोवांछित फल भी देते हैं। सावन में लाखों की तादात में कांवड़िये अलग-अलग जगहों से आते हैं और गंगा का जल अपने कांवड़ में भरकर पैदल यात्रा शुरू करते हैं। कांवड़िए अपने कांवड़ में जो जल एकत्रित करते हैं उससे सावन की चतुर्दशी पर भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है।
मेरठ से लेकर बुलंदशहर के गुलावठी में भी तैयारियां जोरों पर है। हरिद्वार में 17 जुलाई से शुरू होने वाले कांवड़ मेले में 10 हजार से करीब पुलिसकर्मी तैनात किए जाएंगे। पहली बार केंद्र से पैरामिलिट्री की नौ कंपनी मांगी गईं हैं। इस बार तीन करोड़ के करीब कांवडियों के आने का अनुमान लगाया गया है।
मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान समुद्र से जो विष निकला था, उसे भगवान शिव ने दुनिया को बचाने के लिए पी लिया था। जिसके बाद से भगवान शिव को नीलकंठ भी कहा जाने लगा। भगवान शिव के विष का सेवन करते ही दुनिया तो बच गई, लेकिन भगवान शिव का शरीर जलने लगा। ऐसे में भोलेनाथ के शरीर को जलता देख कर देवताओं ने उन पर जल अर्पित करना शुरू कर दिया और इसी मान्यता के अंतर्गत कावड़ यात्रा का महत्व माना गया है।